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पार्किंसन रोग. Parkinsonism & Overview - Paras Hospitals.
परिचय. यह एक जटिल बहुप्रणालीगत न्यूरो अपजनन से सम्बन्धित रोग है । 0 .3% जनता में, जो 40 साल से ऊपर हों उनमे यह मिलती है । यह रोग प्रगतिशील है । हालांकि पार्किंसंस रोग को ठीक नहीं किया जा सकता है, परंतु दवाएं आपके लक्षणों में काफी सुधार कर सकती हैं ।.
पार्किंसन रोग Parkinson disease कम्पवात | Senior Citizen India.
.. पार्किन्सोनिज्म का आरम्भ आहिस्ता - आहिस्ता होता है । पता भी नहीं पड़ता कि कब लक्षण शुरू हुए । अनेक सप्ताहों व महीनों के बाद जब लक्षणों की तीव्रता बढ़ जाती है तब अहसास होता है कि कुछ गड़बड़ है । डॉक्टर जब हिस्ट्री ( इतिवृत्त ) कुरेदते हैं तब मरीज़ व घरवाले पीछे मुड़ कर देखते हैं , याद करते हैं और स्वीकारते हैं कि हां सचमुच ये कुछ लक्षण , कम तीव्रता के साथ पहले से मौजूद थे । लेकिन तारीख बताना सम्भव नहीं होता ।.
.. कभी - कभी किसी विशिष्ट घटना से इन लक्षणों का आरम्भ जोड़ दिया जाता है - उदाहरण के लिये कोई दुर्घटना , चोट , बुखार आदि । यह संयोगवश होता है । उक्त तात्कालिक घटना के कारण मरीज़ का ध्यान पार्किन्सोनिज्म के लक्षणों की ओर चला जाता है जो कि धीरे - धीरे पहले से ही अपनी मौजूदगी बना रहे थे । बहुत सारे मरीजों में पार्किन्सोनिज्म रोग की शुरूआत कम्पन से होती है । कम्पन अर्थात् धूजनी या धूजन या ट्रेमर या कांपना । पार्किंसन किसी को तब होता है जब रसायन पैदा करने वाली मस्तिष्क की कोशिकाएँ गायब होने लगती हैं ।.
मुख्य विशेषताएँ. कम्पन शरीर मे दृढ़ता असामान्य रूप से शारीरिक गतियों का धीमा हो जाना आसन सम्बन्धि अस्थिरता.
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कम्पन किस अंग का ?. हाथ की एक कलाई या अधिक अंगुलियों का , बांह का । यह पहले कम रहता है एवं यदाकदा होता है , रुक रुक कर होता है । बाद में अधिक देर तक रहने लगता है व अन्य अंगों को भी प्रभावित करता है । प्रायः एक ही ओर ( दायें या बायें ) रहता है , परन्तु अनेक मरीजों में , बाद में दोनों ओर होने लगता है ।.
.. आराम की अवस्था में जब हाथ टेबल पर या घुटने पर , जमीन या कुर्सी पर टिका हुआ हो तब यह कम्पन दिखाई पडता है । बारिक सधे हुए काम करने में दिक्कत आने लगती है , जैसे कि लिखना , बटन लगाना , दाढी बनाना , मूंछ के बाल काटना , सुई में धागा पिरोना । कुछ समय बाद में , उसी ओर का पांव प्रभावित होता है । कम्पन या उससे अधिक महत्वपूर्ण , भारीपन या धीमापन के कारण चलते समय वह पैर घिसटता है , धीरे उठता है , देर से उठता है , कम उठता है । धीमापन , समस्त गतिविधियों में व्याप्त हो जाता है । चाल धीमी / काम धीमा हो जाता है ।.
.. शरीर की मांसपेशियों की ताकत कम नहीं होती है , लकवा नहीं होता । परन्तु सुघडता व फूर्ति से काम करने की क्षमता कम होती जाती है । हाथ पैरों में जकडन होती है । मरीज को भारीपन का अहसास हो सकता है । परन्तु जकडन की पहचान चिकित्सक बेहतर कर पाते हैं - जब से मरीज के हाथ पैरों को मोड कर व सीधा कर के देखते हैं , बहुत प्रतिरोध मिलता है । मरीज जानबूझ कर नहीं कर रहा होता । जकडन वाला प्रतिरोध अपने आप बना रहता है ।.
खडे होते समय व चलते समय मरीज सीधा तन कर नहीं रहता । थोडा सा आगे की ओर झुक जाता है । घुटने व कुहनी भी थोडे मुडे रहते हैं । कदम छोटे होते हैं । पांव जमीन में घिसटते हुए आवाज करते हैं । कदम कम उठते हैं गिरने की प्रवृत्ति बन जाती है । ढलान वाली जगह पर छोटे कदम जल्दी - जल्दी उठते हैं व कभी - कभी रोकते नहीं बनता । स्वाभाविक ही मानसिक स्वास्थ्य पर भी इसका असर पडता है ।.
.. सुस्ती , उदासी व चिडचिडापन पैदा होते हैं । स्मृति में मामूली कमी देखी जा सकती है । चलते समय भुजाएं स्थिर रहती हैं , आगे पीछे झूलती नहीं । बैठे से उठने में देर लगती है , दिक्कत होती है । चलते - चलते रुकने व मुडने में परेशानी होती है । चेहरे का दृश्य बदल जाता है ।.
आंखों का झपकना कम हो जाता है । आंखें चौडी खुली रहती हैं । व्यक्ति मानों सतत घूर रहा हो या टकटकी लगाए हो । चेहरा भावशून्य प्रतीत होता है बातचीत करते समय चेहरे पर खिलने वाले तरह - तरह के भाव व मुद्राएं ( जैसे कि मुस्कुराना , हंसना , क्रोध , दुःख , भय आदि ) प्रकट नहीं होते या कम नजर आते हैं । उपरोक्त वर्णित अनेक लक्षणों में से कुछ , प्रायः वृद्धावस्था में बिना पार्किन्सोनिज्म के भी देखे जा सकते हैं । कभी - कभी यह भेद करना मुश्किल हो जाता है कि बूढे व्यक्तियों में होने वाले कम्पन , धीमापन , चलने की दिक्कत डगमगापन आदि पार्किन्सोनिज्म के कारण हैं या सिर्फ उम्र के कारण ।.
.. खाना खाने में तकलीफें होती है । भोजन निगलना धीमा हो जाता है , गले में अटकता है । कम्पन के कारण गिलास या कप छलकते हैं । हाथों से कौर टपकता है । मुंह में लार अधिक आती है । चबाना धीमा हो जाता है । ठसका लगता है , खांसी आती है । बाद के वर्षों में जब औषधियों का आरम्भिक अच्छा प्रभाव क्षीणतर होता चला जाता है । मरीज की गतिविधियां सिमटती जाती हैं , घूमना - फिरना बन्द हो जाता है । दैनिक नित्य कर्मों में मदद लगती है ।.
संवादहीनता पैदा होती है क्योंकि उच्चारण इतना धीमा , स्फुट अस्पष्ट कि घर वालों को भी ठीक से समझ नहीं आता । स्वाभाविक ही मानसिक स्वास्थ्य पर भी इसका असर पडता है । सुस्ती , उदासी व चिडचिडापन पैदा होते है । स्मृति में मामूली कमी देखी जा सकती है ।.
10+ Facts About Parkinson's Disease: Statistics and Realities.
कुछ अन्य लक्षण व समस्याएं. नींद में कमी वजन में कमी कब्जियत जल्दी सांस भर आना पेशाब करने में रुकावट.
जोखिम तत्व. 1. आनुवंशिक कारण । 2. त्वरित उम्र बढ़ने के कारण । 3. पर्यावरण विषाक्त पदार्थ ( मिथाइल-फेनाईल टेट्रा हाइड्रो पाइरीडीन-एमपीटीपी) और अन्य विषाक्त पदार्थ (मैंगनीज, कार्बन मोनोऑक्साइड और मेथनॉल ) । 4. सबस्टैनशिया नाइग्रा में मुक्त रेडिकल और लौह पदार्थ में वृद्धि । 5. औषध - रेसरपाइन, एथेनॉल, लीथियम, डिल्टियाजेम आदि ।.
6. न्यूरोडीजेनेरेटिव विकार जैसे मल्टी सिस्टम एट्रोफी, अल्जाइमर रोग । 7. संक्रमण के बाद (वायरल एन्सेफलाइटिस आदि ) । 8. ब्रेन ट्यूमर । 9. बार-बार सिर में चोट लगना (मुक्केबाजी की तरह ) ।.
आयुर्वेद मे पार्किंसन की चिकित्सा. आयुर्वेद मे अग्नि-दोष-धातु-मल को ध्यान मे रखकर चिकित्सा की जाती है । आयुर्वेद के द्वारा पूर्वरूपावस्था के स्तर पर ही, न्यूरो अपजनन सम्बन्धि प्रक्रिया को नियंत्रण करा जा सकता है । अप्रेरक तांत्रिका के लक्षणों मे सुधार करना । दुष्प्रभावों की तीव्रता को कम करना ।.
रोग निवारक उपाय. पथ्य - शाली, गोधूम, सब्जियां, ड्राइ फ्रूट्स, दूध एवं दूध से बने पदार्थ, अनार, नींबू, आम, संतरा, अमरूद, सेब, आड़ू, लहसुन, अजवाइन, सप्रऑउट्स इत्यादि । रोज व्यायाम का अभ्यास करे । संतुलित मात्रा मे पौष्टिक आहार करें ।.
रोग निवारक उपाय. डॉक्टर की देखरेख में एंटी साइकोटिक या किसी अन्य दवा का सेवन करें । जितना हो सके उतना सक्रिय रहें । अपथ्य - यव, मटर, जामुन, अत्यधिक मात्रा मे प्रोटीन/ मांसजातीय खाद्य पदार्थ, अत्यधिक मसालेदार भोजन ।.
चिकित्सा. निदान परिवर्जन – पर्यावरणीय विषाक्त पदार्थों, दवाओं, सिर की चोटों, संक्रमण जैसे कारकों से बचा जाना चाहिए । शमन चिकित्सा – अश्वगंधा, कपिकच्छु बीज, बला, ब्राह्मी स्वरस, दशमूल क्वाथ, वातारि गुग्गुलु इत्यादि.
चिकित्सा. 3. पंचकर्म – स्नेहन, सर्वांग स्वेद, मात्रा बस्ति, शिरोबस्ति, शिरोधारा इत्यादि । 4. अन्य – प्राणायाम, ध्यान (मेडिटेशन) करना चाहिए, आसन, योग निद्रा इत्यादि.
धन्यवाद.